गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई पत्नी की बातचीत अब कोर्ट में साक्ष्य के रूप में मान्य: सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, 15 जुलाई (CG ई खबर)। 
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस निर्णय को खारिज कर दिया है, जिसमें पत्नी की टेलीफोन पर हुई बातचीत को उसकी जानकारी के बिना रिकॉर्ड करना निजता के अधिकार का उल्लंघन माना गया था और इसे पारिवारिक विवाद में साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य कहा गया था।

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यदि वैवाहिक संबंध इस स्तर तक बिगड़ चुके हैं कि पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी कर रहे हैं, तो यह पहले से ही रिश्ते के टूटने और अविश्वास का संकेत है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैवाहिक विवादों में गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

🧑‍⚖️ क्या था मामला?

बठिंडा की एक फैमिली कोर्ट ने पति को उसकी पत्नी की फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग एक सीडी के माध्यम से प्रस्तुत करने की अनुमति दी थी, ताकि वह पत्नी की ओर से की गई मानसिक क्रूरता को सिद्ध कर सके। इस आदेश को पत्नी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और हाईकोर्ट ने उस सीडी को निजता के उल्लंघन के आधार पर साक्ष्य मानने से इनकार कर दिया।

📜 हाईकोर्ट का रुख

हाईकोर्ट ने कहा कि बिना जानकारी के की गई रिकॉर्डिंग न केवल निजता के अधिकार का हनन है, बल्कि यह स्पष्ट नहीं करता कि बातचीत किस संदर्भ या मनःस्थिति में हुई थी। इसलिए इसे वैध साक्ष्य नहीं माना जा सकता।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए कहा कि:

  • निजता का अधिकार पूर्ण नहीं है, इसे अन्य संवैधानिक मूल्यों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
  • क्रूरता जैसे मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी स्वीकार्य हो सकते हैं।
  • अदालतों को ऐसे साक्ष्य की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता की जांच के बाद ही उस पर भरोसा करना चाहिए।

याचिकाकर्ता की ओर से वकील अंकित स्वरूप ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के मामलों में निजी बातचीत महत्वपूर्ण साक्ष्य बन सकती है। ऐसे मामलों में कई बार प्रत्यक्षदर्शी नहीं होते, इसलिए तकनीकी माध्यम से जुटाए गए साक्ष्य का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

📌 निष्कर्ष

इस फैसले से अब वैवाहिक मामलों में रिकॉर्ड की गई गुप्त बातचीत भी साक्ष्य के रूप में पेश की जा सकेगी, बशर्ते उसकी प्रमाणिकता साबित हो। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निजता के अधिकार और न्यायिक जांच के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है।

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