ताज़ा मामला तब सामने आया जब एक संयुक्त सचिव, भारत सरकार, गृह विभाग के अधिकारी श्री प्रसन्ना आर. की प्रतिनियुक्ति मंत्रालय में हुआ जिसके स्थानांतरण पर विदाई समारोह व नये अफसर सचिव, छत्तीसगढ़ शासन, उच्च शिक्षा विभाग श्री एस. भारती दासन के आने के खुशी पर बाकायदा छपे हुए आमंत्रण पत्र बांटे जाने लगे।
छत्तीसगढ़ में आज कल यही नजारा नजर आता हैं। आख़िर बड़े होटल में अफसरों के ऐसे आयोजन का खर्च कौन उठाता है। यह आज तक समझ में नहीं आया, सुशासन की सत्ता में भी अफसरों का जलवा राजाओ जैसा ही हैं। अगर किसी विभाग में नए साहब आ रहे तो स्वागत पार्टी का आयोजन और विभाग से कोई साहब जा रहे हैं तो विदाई पार्टी का आयोजन देखने से तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पार्टी करना बेहद जरूरी हो गया हैं।
एक तरफ़ सुशासन की सरकार में वित्त मंत्री प्रदेश सरकार की आर्थिक हालत सही नहीं है ऐसा बयान देते नजर आते हैं। फ़िज़ूल खर्च पर रोक लगाने का डंका बजाते हैं, वही दूसरी ओर अफसरों का ऐसा आयोजन मंत्री जी को मुंह चिड़ाते नजर आते हैं। जहां एक ओर जनता मूलभूत सुविधाओं और सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता को लेकर परेशान है, वहीं दूसरी ओर अफसरों के लिए इस तरह के कार्यक्रमों में सार्वजनिक संसाधनों और समय की बर्बादी को लेकर आलोचना हो रही है।
सरकार की चुप्पी
फिलहाल राज्य सरकार या संबंधित विभाग की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मीडिया में लगातार इस मामले को उठाए जाने के बाद प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। अब ऐसे आयोजन का खर्च किसके मत्थे है यह भी जाँच का विषय हैं। आख़िर राजधानी की बड़ी होटल में अफसरों का ऐसा आयोजन चर्चाओ में बना हुआ हैं। प्रदेश की राजधानी से एक नौकरशाह देश की राजधानी प्रतिनियुक्ति में जा रहे है वही दूसरी ओर उनकी जगह दूसरे नौकरशाह आ रहे है अब इनके आने और जाने पर उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त के नाम से आमंत्रण पत्र बँटवाया जा रहा हैं।
निष्कर्ष
आख़िर इनके आने और जाने से छत्तीसगढ़ की जनता को क्या फ़ायदा हो रहा है, यह समझ से परे हैं। इस आयोजन का खर्च अगर सरकारी खजाने से हो रहा है तो यह सही मापदंड तो नहीं माना जाएगा। यह मामला केवल एक आयोजन का नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक बनता जा रहा है जिसमें जनसेवा के बजाय आत्मप्रचार को अधिक महत्व मिल रहा है।आख़िर सुशासन की सरकार में अफसरों का ही बोलबाला हैं।अब ऐसी फिज़ूलखर्ची पर कौन लगाम लगाएगा।