हाईकोर्ट का बड़ा फैसला SC/ST दर्जा खत्म: ईसाई बनने पर नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ


आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक बड़ा ही महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC/ST) का होते हुए ईसाई धर्म अपना लेता है, तो वह SC/ST दर्जा स्वतः ही खो देता है। ऐसे व्यक्ति को फिर SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा।

यह ऐतिहासिक फैसला गुंटूर जिले के कोथापलेम निवासी पादरी चिंतादा आनंद से जुड़े एक मामले में सुनाया गया है।


क्या था मामला?

जनवरी 2021 में चिंतादा आनंद ने फिंगेश्वर थाना में शिकायत दर्ज कराई थी कि अक्कला रामिरेड्डी और अन्य ने उन्हें जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया। पुलिस ने इस मामले पर SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया। लेकिन आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर एफआईआर रद्द करने की मांग की।


अदालत का स्पष्ट तर्क दिया

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एन. हरिनाथ ने कहा कि चूंकि आनंद ईसाई धर्म  को अपना चुके हैं और पादरी के रूप में इसाई धर्म में सेवा दे रहे हैं, इसलिए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के अनुसार वे अब SC/ST श्रेणी में नहीं आते। अदालत ने यह भी कहा कि:

  • ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था का कोई स्थान नहीं है।
  • धर्मांतरण के बाद SC/ST दर्जा स्वतः समाप्त हो जाता है, भले ही उस व्यक्ति के पास पूर्व में जारी जाति प्रमाणपत्र हो।

पुलिस की जांच पर न्यायालय ने जताई आपत्ति

न्यायालय ने पुलिस की जांच की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए और कहा कि धार्मिक स्थिति की पुष्टि किए बिना SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज करना गंभीर लापरवाही है। अदालत ने यह भी कहा कि आनंद ने पूर्व SC/ST दर्जे का हवाला देकर कानून का दुरुपयोग किया।


न्यायलय ने क्या आदेश दिया गया?

  • रामिरेड्डी और अन्य के खिलाफ केस को खारिज कर दिया गया है।
  • आनंद के जाति प्रमाणपत्र की वैधता की जांच के निर्देश दिए गए हैं।
  • अदालत ने यह भी स्पष्ट किया करदिया है कि धर्म परिवर्तन के बाद, जाति प्रमाणपत्र की उपस्थिति भी किसी कानूनी संरक्षण का आधार नहीं बन सकता।

फैसले के प्रभाव और महत्व

इस फैसले को SC/ST कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने की पहल माना जा रहा है। साथ ही यह निर्णय धर्मांतरण और आरक्षण नीति के जटिल संबंधों को भी उजागर करता है।

यह फैसला भविष्य में न्यायिक स्पष्टता, प्रशासनिक जिम्मेदारी और आरक्षण व्यवस्था की पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम साबित हो सकता है।

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