कोरबा जिले के मलगांव के साथ यह कथन एक कड़वा सच बनकर सामने आया है। वर्षों पुराना यह गांव अब सिर्फ यादों में ही बचेगा। शुक्रवार को कुछ ही घंटों की प्रशासनिक कार्रवाई में मलगांव का नामोनिशान मिटा दिया गया। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) की खदान विस्तार योजना के तहत यह कदम उठाया गया।
इस गांव को हटाने की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी। ग्रामीणों और प्रशासन के बीच तनातनी बनी हुई थी। बार-बार की ब्लास्टिंग से लोग पहले ही त्रस्त थे और अधिकांश परिवार पहले ही पलायन कर चुके थे। मात्र 8 से 10 परिवार गांव में बचे थे, जिन्हें अब जबरन हटा दिया गया है। दो बसों में भरकर पुलिस बल गांव में तैनात किया गया, स्थानीय सुरक्षा बलों के सहयोग से कार्रवाई को अंजाम दिया गया।
कार्रवाई के दौरान ग्रामीणों के घरों को तोड़ा गया, पेड़-पौधों को उजाड़ा गया और जमीन को पूरी तरह समतल कर डोजरिंग की गई। अब वहां कोई चिह्न तक नहीं बचा है जो यह बता सके कि कभी यहां ‘मलगांव’ नाम का कोई गांव था।
"नियमों से खिलवाड़", पीड़ित की चेतावनी
गांव के निवासी राजेश जायसवाल ने इस कार्रवाई को अवैध और अन्यायपूर्ण बताते हुए सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही मुआवजा या पुनर्वास का कोई प्रबंध किया गया।
उन्होंने बताया कि उनके पिता उदय नारायण जायसवाल ने पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से अपने घर के पास बगीचा लगाया था, जिसे भी उजाड़ दिया गया। राजेश ने चेतावनी दी है कि अगर 7 दिन के भीतर उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे अपने परिवार के साथ आत्मदाह करेंगे। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी सीधे SECL और जिला प्रशासन पर डाली है।
बिजली काटकर बनाया दबाव
मलगांव के लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ने की तैयारी पहले ही शुरू हो चुकी थी। कार्रवाई से ठीक एक दिन पहले, 29 मई को गांव की बिजली सप्लाई काट दी गई। भीषण गर्मी में बिजली न होने से ग्रामीणों की तकलीफें और बढ़ गईं। उद्देश्य साफ था — लोगों को गांव छोड़ने पर मजबूर करना।
इसके पहले, गांव का स्कूल भी गिरा दिया गया था। बच्चों और शिक्षकों को झाबर स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे गांव की सामाजिक संरचना पहले ही हिल चुकी थी।
प्रशासन और कंपनी पर उठे सवाल
पूरे घटनाक्रम ने प्रशासन और SECL की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि पुनर्वास और विस्थापन संबंधी नियमों की खुलेआम अनदेखी की गई।
अब देखना होगा कि प्रशासन इस गंभीर चेतावनी और जनआक्रोश पर क्या प्रतिक्रिया देता है — क्या न्याय होगा या मलगांव की आवाज भी बाकी विस्थापित गांवों की तरह इतिहास बनकर रह जाएगी।