गेड़ी पर्व पर बोले सर्व पत्रकार एकता महासंघ के पदाधिकारी — “छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा त्योहार है हरेली”


कोरबा, छत्तीसगढ़। (
CG ई खबर | प्रमुख संपादक : ओम प्रकाश पटेल) छत्तीसगढ़ की लोकपरंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने के उद्देश्य से सर्व पत्रकार एकता महासंघ छत्तीसगढ़, जिला कोरबा के पदाधिकारियों ने हरेली तिहार को लेकर एक विशेष चर्चा का आयोजन किया। इस मौके पर जिला अध्यक्ष जावेद अली आज़ाद, जिला सचिव ओम प्रकाश पटेल, कोषाध्यक्ष कैलाषु पटेल, सह सचिव मोहन चौहान, एवं मीडिया प्रभारी प्रदीप रॉव उपस्थित रहे।


छत्तीसगढ़ का सबसे पहला पर्व है ‘हरेली’

इस अवसर पर जिलाध्यक्ष जावेद अली आज़ाद ने कहा —

“हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार माना जाता है, जो सावन माह की अमावस्या को बड़े ही श्रद्धा और उमंग के साथ मनाया जाता है। ‘हरियाली’ से बना ‘हरेली’ नाम स्वयं दर्शाता है कि यह प्रकृति, खेती और हरियाली से जुड़ा उत्सव है।”

 गेड़ी – परंपरा और कौशल का प्रतीक उन्होंने आगे बताया –

“हरेली में बच्चे और युवक गेड़ी चढ़ते हैं। गेड़ी बनाने के लिए पहले बांस को छीलकर दो लंबे डंडे बनाए जाते हैं, फिर इन डंडों के बीच में एक छोटी टिकठी लगाई जाती है जिसे पैर रखने के लिए बनाया जाता है। गेड़ी बनाना एक हुनर भी है और ग्रामीण क्षेत्रों में यह बच्चों के लिए एक परंपरागत खेल भी है। आज भी गाँवों में गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता होती है।”


त्योहार का ऐतिहासिक महत्व

जिला सचिव ओम प्रकाश पटेल ने बताया कि —

“हरेली त्योहार खेती किसानी की समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं, बैलों को नहलाकर सजाया जाता है, उन्हें तेल लगाया जाता है। साथ ही नीम के पत्तों को घर के दरवाजे में लगाया जाता है, जो बीमारियों से बचाने का प्रतीक है।”

 कृषि यंत्रों की पूजा और फसल के लिए प्रार्थना

“आज के दिन किसान अपने हल, फरसा, कुदाल, गैंती, बैलगाड़ी के पुर्जे आदि औजारों को धोते हैं, उन्हें सजाते हैं और नारियल, अगरबत्ती जलाकर पूजा अर्पित करते हैं। 

इस पूजा के माध्यम से अच्छी फसल, पशुधन की सुरक्षा, और घर-परिवार की समृद्धि की कामना की जाती है।"

क्या-क्या व्यंजन बनते हैं हरेली पर?

उन्होंने आगे कहा –

“इस दिन खासतौर पर छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाए जाते हैं जैसे– चिलाफराठेठरीखुरमीबड़ाअरसापूरा, और देसी घी में बना हलवा। वहीं गाँवों में बैल-गाड़ी दौड़ और गेड़ी दौड़ प्रतियोगिताएं भी होती हैं।”


पशुधन और परंपरा का सम्मान

कोषाध्यक्ष कैलाषु पटेल ने बताया कि —

“हरेली में बैलों को नहलाया जाता है, उन्हें रंग-रोगन करके सजाया जाता है, पैरों में तेल लगाया जाता है। किसान अपने बैल को सम्मान देते हैं, क्योंकि वही उनके खेत का असली सहारा होता है।”


निष्कर्ष

सर्व पत्रकार एकता महासंघ के पदाधिकारियों की यह पहल प्रशंसनीय है, जो न केवल पत्रकारिता के दायरे को व्यापक बना रही है, बल्कि छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति को पुनर्जीवित करने का कार्य भी कर रही है। हरेली जैसे पारंपरिक पर्वों को नई पीढ़ी के सामने लाना आज के समय की आवश्यकता है।


उपस्थित पदाधिकारी

  • जावेद अली आज़ाद – जिला अध्यक्ष
  • ओम प्रकाश पटेल – जिला सचिव
  • कैलाषु पटेल – जिला कोषाध्यक्ष
  • मोहन चौहान – जिला सह सचिव
  • प्रदीप रॉव – जिला मीडिया प्रभारी


📍रिपोर्ट – CG ई खबर, कोरबा
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