कुसमुंडा परियोजना में जमीन और नौकरी घोटाले का आरोप, महिला के तीन दिवसीय धरने के बाद SECL ने जांच शुरू की


कोरबा/कुसमुंडा। (CG ई खबर|प्रमुख संपादक : ओम प्रकाश पटेल) 
एसईसीएल (SECL) की कुसमुंडा परियोजना एक बार फिर विवादों में घिर गई है। ग्राम मनगांव की महिला गोमती केंवट ने जमीन अधिग्रहण के एवज में नौकरी नहीं मिलने और फर्जीवाड़े से किसी अन्य को नियुक्ति देने के आरोप लगाए हैं। अपनी मांग को लेकर महिला ने कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के बाहर तीन दिन तक धरना दिया। धरने के दबाव के बाद आखिरकार SECL प्रबंधन को झुकना पड़ा और जांच की घोषणा करनी पड़ी।

धरने से झुका प्रबंधन, जांच का आदेश

धरना सोमवार सुबह शुरू हुआ और देर रात तक जारी रहा। इस दौरान स्थानीय ग्रामीणों और कर्मचारियों ने भी गोमती केंवट का समर्थन किया। अंततः कंपनी ने पत्र जारी कर जांच की प्रक्रिया प्रारंभ करने की सूचना दी। कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय द्वारा पत्र क्रमांक 1530, दिनांक 21 जुलाई 2025 को स्टाफ अधिकारी (एचआर), भटगांव क्षेत्र को भेजा गया है, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि यदि नौकरी पाने वाला व्यक्ति — प्रहलाद, पिता रमेश — त्यागपत्र या VRS की स्थिति में है, तो नियमानुसार कार्रवाई की जाए।

गंभीर आरोप : "हमारी जमीन, किसी और को नौकरी"

गोमती केंवट ने आरोप लगाया कि उनके ससुर रमेश, पिता सलिकराम के नाम पर दर्ज ग्राम मनगांव की जमीन को एसईसीएल ने अधिग्रहित किया, परंतु नियमानुसार परिवार के किसी सदस्य को नौकरी देने के बजाय किसी अन्य व्यक्ति — प्रहलाद, पिता रमेश — को लाभ पहुंचाया गया। महिला का आरोप है कि दस्तावेजों की कूट रचना कर नियुक्ति की गई, जबकि उनका परिवार बेरोजगार रह गया।

देय भुगतान पर लगी रोक, जांच अधिकारी की होगी नियुक्ति

SECL के पत्र में यह भी उल्लेख है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक संबंधित व्यक्ति को कोई देय भुगतान नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही एक भू-राजस्व अधिकारी की नियुक्ति कर जांच में तेजी लाने की बात कही गई है। इस मामले में प्रहलाद के खिलाफ पहले से ही विभागीय जांच भटगांव क्षेत्र में लंबित है।

"हमारी ज़मीन गई, नौकरी किसी और को मिली — ये अन्याय है"

मीडिया से बात करते हुए गोमती केंवट ने कहा, “हमारी ज़मीन गई, लेकिन नौकरी किसी और को मिल गई — यह अन्याय है। मैं इसके खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ूंगी।” उनका यह विरोध सिर्फ एक परिवार के हक की लड़ाई नहीं, बल्कि विस्थापित ग्रामीणों की पीड़ा और अधिकारों की अनदेखी के खिलाफ एक आवाज बन गया है।

सवालों के घेरे में SECL की पारदर्शिता

यह मामला SECL की प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है। यदि जांच निष्पक्ष व शीघ्र होती है, तो यह अन्य पीड़ितों के लिए भी एक नई उम्मीद बन सकती है। गोमती केंवट का साहसिक कदम यह साबित करता है कि सत्य की लड़ाई जब दृढ़ता से लड़ी जाती है, तो व्यवस्था को झुकना ही पड़ता है।

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