रायपुर (CG ई खबर): नौकरी, विश्वविद्यालय में प्रवेश और छात्रवृत्ति पाने के लिए जाति प्रमाण पत्र आवश्यक दस्तावेज़ है। यह प्रमाण पत्र केवल पात्र आवेदकों को ही नियमानुसार जारी किया जाता है। लेकिन, यदि कोई फर्जी प्रमाण पत्र बनवाता है तो यह कानूनन अपराध है।
एडवोकेट महेश लाठी का कहना है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने या उपयोग करने पर 7 साल तक की सजा और अर्थदंड का प्रावधान है। इसके आधार पर मिली सरकारी नौकरी तुरंत रद्द हो जाती है। शिक्षा संस्थानों में दाखिला भी निरस्त कर दिया जाता है और भविष्य बर्बाद हो सकता है। साथ ही समाज में विश्वास, प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत पहचान पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर मिले आरक्षण, छात्रवृत्ति और सरकारी योजनाओं के लाभ वापस वसूले जाते हैं। यानी यह कदम करियर, सम्मान और भविष्य – तीनों को खतरे में डाल सकता है।
जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन की तीन प्रमुख प्रक्रिया
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सत्र 2000 से पहले का प्रमाण पत्र
- आधार कार्ड, समग्र आईडी, जन्मतिथि वाली अंकसूची, फोटो और पूर्व प्रमाण पत्र देकर इसे डिजिटाइज कराया जा सकता है।
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रक्त संबंध के आधार पर
- माता-पिता, दादा-दादी, चाचा या भाई-बहन के प्रमाण पत्र की कॉपी के साथ आधार, समग्र और फोटो देना होगा।
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यदि पूर्व प्रमाण पत्र उपलब्ध न हो
- निवास प्रमाण पत्र, अंकसूची, आधार, समग्र और फोटो के आधार पर नया प्रमाण पत्र बनवाया जा सकता है।
निष्कर्ष यही है कि फर्जी दस्तावेज़ बनाना न केवल अपराध है, बल्कि सामाजिक रूप से भी गलत है। सही दस्तावेज़ों के साथ ही प्रमाण पत्र बनवाना चाहिए और यदि कोई त्रुटि हो तो उसे तुरंत सुधारना आवश्यक है।