कोयला खदानों से विस्थापन का दर्द और भविष्य का संकट: क्या सरकार और SECL जागेगी?

कोरबा की धरती पर 'भू-विस्थापित संवाद' ने उठाई न्याय की हुंकार


छत्तीसगढ़//कोरबा : (CG ई खबर): 
कोरबा जिले के हरदीबाजार में आयोजित "भू-विस्थापित संवाद सभा" ने एक बार फिर कोयला खदानों से प्रभावित लाखों लोगों की पीड़ा और भविष्य के संकट को राष्ट्रीय स्तर पर सामने ला दिया। यह संवाद केवल मांगों का मंच नहीं था, बल्कि कोरबा की आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व को लेकर गहरी चिंता का प्रतीक भी बना।

सभा को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एसईसीएल (SECL) और राज्य सरकार को कड़ा संदेश दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि विस्थापितों की मांगों की अनदेखी की गई तो वे अपने 35 विधायकों के साथ खदानों में उतरकर बड़ा आंदोलन करेंगे। बघेल ने 5वीं अनुसूची ग्राम सभा के अधिकार, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों के पालन और 2004 में अधिग्रहित भूमि का वर्तमान बाजार दर पर मुआवजा देने की मांग प्रमुख रूप से उठाई।


1960 से 2040 तक का संकट: हमने क्या खोया और क्या खोएंगे?

सभा में वक्ताओं ने 1960 के दशक से अब तक कोरबा में कोयला खदानों के विस्तार से हुए नुकसान और आने वाले 20-30 वर्षों में पैदा होने वाले संकट पर विस्तार से चर्चा की।

मुख्य चुनौतियाँ :

🔴 कृषि भूमि का विनाश और खाद्य संकट
लगातार खनन से उपजाऊ कृषि भूमि नष्ट हो चुकी है। जल संकट और पर्यावरणीय क्षति ने बची-खुची खेती को भी प्रभावित कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही हालात रहे तो आने वाली पीढ़ियाँ खाद्य संकट और आजीविका की गंभीर समस्या से जूझेंगी।

🔴 रोजगार और खदान बंदी का खतरा
कोरबा की बड़ी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोयला उद्योग से जुड़ी है। लेकिन आने वाले 20 वर्षों में खदानें धीरे-धीरे बंद होने लगेंगी। उस स्थिति में लाखों लोगों का रोजगार छिन जाएगा। न खेती बचेगी, न कोयला उद्योग – ऐसे में कोरबा के युवाओं का भविष्य अधर में लटक जाएगा।


अब 'आंदोलन' ही विकल्प

सभा से यह आह्वान किया गया कि यह आंदोलन केवल मुआवजे या नौकरी तक सीमित न रहे, बल्कि कोरबा के दीर्घकालिक अस्तित्व की लड़ाई बने। वक्ताओं ने जोर दिया कि एसईसीएल को केवल मुनाफा नहीं, बल्कि विस्थापितों की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।

सभा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सभी 35 विधायकों से यह अपील की गई कि वे विस्थापितों के इस संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर शामिल हों। यह आंदोलन कोरबा को बचाने, विस्थापितों को न्याय दिलाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने की निर्णायक लड़ाई होगा।

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