ब्रेकिंग न्यूज़: कर्नाटक में फेक न्यूज पर लगाम कसने की तैयारी, 7 साल की सजा और 10 लाख तक जुर्माना!


बेंगलुरु | 23 जून 2025 (CG ई खबर) 
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया जहां जानकारी साझा करने का एक सशक्त माध्यम बन चुका है, वहीं यह फेक न्यूज और भ्रामक सूचनाओं का अड्डा भी बनता जा रहा है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए कर्नाटक सरकार बड़ा कदम उठाने जा रही है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने एक नया विधेयक पेश किया है, जिसके तहत जानबूझकर गलत जानकारी फैलाने वालों को 7 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

🔍 क्या है नया कानून?

कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तावित इस बिल में सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स, ब्लॉग और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी खबरों को अपराध की श्रेणी में लाने की बात कही गई है।

  • एडिटेड वीडियो, मॉर्फ की गई इमेज या झूठे टेक्स्ट को फैलाना अब अपराध माना जाएगा।
  • कानून लागू होने के बाद ऐसे मामलों पर सीधी कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।

📊 भारत बना फेक न्यूज का गढ़!

कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने चिंता जताई है कि भारत आज दुनिया में फेक न्यूज फैलाने में पहले स्थान पर है। उन्होंने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में गलत सूचना अब कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है।

🤔 फेक न्यूज vs मिसइन्फॉर्मेशन — क्या है अंतर?

  • फेक न्यूज: जानबूझकर फैलाई गई झूठी खबर, जिससे किसी की छवि या जीवन को नुकसान हो।
  • मिसइन्फॉर्मेशन: अनजाने में फैलाई गई गलत सूचना, जो भले ही इरादतन न हो, लेकिन असर उतना ही घातक होता है।

सरकार का मानना है कि दोनों ही स्थितियों में सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि समाज में शांति और भरोसा बना रहे।

🛑 3M बन रहे लोकतंत्र के दुश्मन

प्रियांक खरगे ने कहा कि आज लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा "3M" से है —
Money (धनबल), Muscle (बलपूर्वक दबाव) और Misinformation (गलत जानकारी)।
उनके मुताबिक, इन तीनों की जड़ में अक्सर सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहें होती हैं।

⚖️ क्या यह कानून जरूरी है?

विशेषज्ञों की मानें तो यह कानून समय की मांग है।
हर हाथ में स्मार्टफोन और हर प्लेटफॉर्म पर वायरल होती अफवाहें — समाज में तनाव, नफरत और हिंसा का कारण बन रही हैं। यह कानून जागरूकता बढ़ाने और डिजिटल जिम्मेदारी को बढ़ावा देने का एक प्रयास भी है।


🔔 निष्कर्ष:
अगर यह कानून पास होता है और अन्य राज्यों में भी लागू किया जाता है, तो भारत को फेक न्यूज की राजधानी होने की बदनामी से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही, यह समाज में सच्चाई और शांति की स्थापना की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।

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