रायपुर | (CG ई खबर) : छत्तीसगढ़, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, मधुर भाषा और जीवंत लोककलाओं के लिए देशभर में पहचाना जाता है, आज एक गंभीर सांस्कृतिक संकट से जूझ रहा है। कभी जो छत्तीसगढ़ी गीत आत्मा को सुकून देते थे, वही अब अश्लीलता और बाजारवाद की चपेट में आ चुके हैं।
हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ी म्यूजिक इंडस्ट्री में जिस प्रकार अश्लील और भद्दे गीतों का चलन बढ़ा है, वह न केवल सामाजिक चिंता का विषय है, बल्कि हमारी युवा पीढ़ी के संस्कारों को भी प्रभावित कर रहा है। व्यूज़, लाइक्स और वायरलिटी की दौड़ में कुछ कलाकार इस हद तक पहुंच गए हैं कि अब उनकी रचनाएं छत्तीसगढ़ी संस्कृति को शर्मसार कर रही हैं।
गीतों की भाषा में गरिमा की कमी, महिलाओं के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग, और पारिवारिक मूल्यों की अवहेलना – यह सब आम होता जा रहा है। सवाल उठता है: क्या यह वही छत्तीसगढ़ है जहां “सोन के नगरी” और “आरती गाते छत्तीसगढ़” जैसे गीत लोक आत्मा में बसते थे?
समाज की भूमिका भी कम नहीं
यह केवल कलाकारों या निर्माताओं का दोष नहीं है। समाज के एक हिस्से ने भी इन अश्लील गीतों को बढ़ावा दिया है – उन्हें लाइक करके, शेयर करके, और मंच देकर। जब हम ऐसे कंटेंट को प्रोत्साहित करते हैं, तो हम अनजाने में अपनी ही संस्कृति को कमजोर कर रहे होते हैं।
बच्चों और युवाओं पर असर
सबसे बड़ी चिंता यह है कि इन गानों का सबसे ज्यादा असर उन बच्चों और युवाओं पर हो रहा है, जिनका मन और सोच अभी बन ही रही है। जब वे "लोकगीत" के नाम पर मोबाइल पर अश्लीलता पाते हैं, तो हम उनकी सोच की नींव में क्या भर रहे हैं?
कला की स्वतंत्रता बनाम मर्यादा की सीमा
बेशक, कला स्वतंत्र होनी चाहिए। लेकिन क्या स्वतंत्रता का मतलब यह है कि हम संस्कृति की गरिमा को भूल जाएं? कला वही महान होती है जो समाज को ऊपर उठाए, न कि उसे गिराए।
समाधान क्या है?
अब समय है कि कलाकार, निर्माता, दर्शक और समाज – सभी मिलकर आवाज़ उठाएं। एक ऐसी मनोरंजन संस्कृति गढ़ी जाए जो प्रेरणादायक हो, गरिमामयी हो और सच्चे छत्तीसगढ़ की आत्मा को दर्शाए।
यदि अभी नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियों को हम क्या सौंपेंगे – संस्कार या शर्म?
यह निर्णय हमें आज लेना होगा। नहीं तो कल सिर्फ पछतावा बचेगा – और हमारी सांस्कृतिक विरासत की जगह अश्लील गानों की टीसती यादें।