जनवरी से जून तक, तिहार में भी चलता रहा आवेदन का सिलसिला — पर खतरे को टालने की सुध नहीं ली अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने

  • पार्षद ने शरण देने की बात कही, फिर रात होते ही मुकर गया
  • अधिकारियों पर तय होनी चाहिए घटना की जिम्मेदारी


कोरबा, बांकीमोंगरा।
नवगठित नगर पालिका परिषद बांकीमोंगरा में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही ने एक गरीब परिवार को खुले आसमान के नीचे ला खड़ा किया है। महीनों से उड़ाई जा रही चेतावनियों और तिहार में दर्ज कराए गए आवेदन के बावजूद एक सूखा बरगद का पेड़ न काटे जाने से मंगलवार को हुए हादसे ने प्रशासन की संवेदनहीनता की पोल खोल दी है।

वार्ड क्रमांक 03, मोंगरा बस्ती स्थित भीमसेन मंदिर परिसर के पास आबादी क्षेत्र में मौजूद विशाल सूखे बरगद पेड़ को हटाने की मांग कई बार की गई थी। स्थानीय निवासी और कोयला मजदूर पंचायत के अध्यक्ष गजेंद्र पाल सिंह ने जनवरी और जून में आवेदन दिया, वहीं पीड़ित मंगलू दास की पत्नी गीता ने भी ‘सुशासन तिहार’ में शिकायत सौंपी थी। बावजूद इसके न तो नगर पालिका के सीएमओ ने कोई संज्ञान लिया, न ही जनप्रतिनिधियों ने चिंता दिखाई।

पेड़ गिरा, छीन गया आशियाना
17 जून, मंगलवार को हुई हल्की बारिश में पेड़ का एक बड़ा हिस्सा अचानक गिर पड़ा और गरीब ग्रामीण मंगलू दास के घर को पूरी तरह मलबे में तब्दील कर दिया। घर के अंदर मौजूद बेटे आलोक दास को मामूली चोटें आईं, लेकिन पूरा घर और उसका सामान बर्बाद हो गया। बिजली व्यवस्था भी ठप हो गई।

पार्षद ने किया वादा, फिर पलट गए
घटना की जानकारी मिलने पर पालिकाध्यक्ष सोनी झा मौके पर पहुंचीं। वार्ड के पार्षद लोकनाथ सिंह तंवर ने पीड़ित परिवार को अपने नवनिर्मित मकान में शरण देने का वादा किया, लेकिन रात होते-होते उन्होंने खुद ही मुंह मोड़ लिया। मजबूरन मंगलू दास का परिवार उसी पार्षद के घर के सामने पूरी रात खुले में गुजारने को मजबूर हो गया।

आज से पालिका में डेरा डालेंगे मोहल्लेवासी
स्थानीय निवासियों में इस हादसे को लेकर भारी रोष है। बुधवार को सभी मोहल्लेवासी नगर पालिका कार्यालय में डेरा डालेंगे। मांग की जा रही है कि पेड़ की तत्काल कटाई की जाए, पीड़ित परिवार को तत्काल आर्थिक सहायता और वैकल्पिक निवास मुहैया कराया जाए। साथ ही दोषी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई हो।

जनता पूछ रही सवाल
नगरपालिका क्षेत्र में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता अब जान और माल पर भारी पड़ने लगी है। रोज़ उस मार्ग से गुजरने वाले जिम्मेदार लोगों ने खतरे को नजरअंदाज किया, जिसकी कीमत अब एक गरीब परिवार को चुकानी पड़ी।

अब सवाल यह उठता है कि क्या केवल आवेदन करना पर्याप्त नहीं? क्या सुशासन तिहार जैसे कार्यक्रम महज़ औपचारिकता हैं? और सबसे बड़ा सवाल—जनता के प्रति जवाबदेही किसकी है?

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