FIR या फंसाने की साजिश? कोरबा बाँकी मोंगरा में विवादित FIR: पुलिस की निष्पक्षता पर उठे सवाल

कोरबा: एक FIR ने पुलिस की नीति और नीयत पर उठाए गंभीर सवाल

कोरबा, 10 जून 2025 | (CG ई खबर छ.ग. राज्य ब्यूरो चीफ : ओम प्रकाश पटेल) कोरबा ज़िले के बांकीमोगरा थाना क्षेत्र में एक एफआईआर को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जिसने पुलिस की नीति, नीयत और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना एक आदिवासी किसान और भाजपा नेत्री के बीच सड़क पर हुए विवाद से शुरू हुई, जो अब छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोप और एक एफआईआर में तब्दील हो चुकी है।

क्या है मामला?

7 मई 2025 की शाम रावणभाठा मार्ग पर कार साइड देने को लेकर आदिवासी किसान बलवान सिंह कंवर और भाजपा नेत्री के बीच बहस शुरू हुई। यह विवाद थाना परिसर तक पहुँचा, जहां किसान के साथ मारपीट के वीडियो भी सोशल मीडिया पर सामने आए। हैरानी की बात यह रही कि घटना के दौरान या थाना परिसर में नेत्री द्वारा "छेड़छाड़" शब्द का कहीं उल्लेख नहीं हुआ।

नेत्री की शिकायत और एफआईआर की टाइमिंग पर उठे सवाल

  • 8 मई को खुद किसान ने नेत्री और उनके साथियों के खिलाफ मारपीट की रिपोर्ट दर्ज करवाई।
  • इसके बाद, 9 मई को नेत्री ने 7 मई को कथित छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज कराई, जिसमें बलवान सिंह पर गंभीर आरोप लगाए गए।
  • FIR दर्ज करने में देरी, थाने की पावती पर ओवरराइटिंग और शिकायत की तारीख में गड़बड़ी जैसे तथ्यों ने पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं।

प्रशासन और पुलिस पर दबाव के आरोप

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और कांग्रेस विधायक फूलसिंह राठिया के पत्र के बाद पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ तिवारी के निर्देश पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन आरोप है कि पुलिस ने दबाव में आकर नेत्री की देरी से की गई शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की। इससे आदिवासी समुदाय में रोष है और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं।

जांच के घेरे में ये मुख्य प्रश्न:

  1. जब आरोपी थाने लाया गया, तो उसी समय हिरासत में क्यों नहीं लिया गया?
  2. थाना परिसर में हुई घटना के दौरान पुलिस कर्मी मौन क्यों रहे?
  3. आवेदन पर ओवरराइटिंग किसने की और क्यों?
  4. क्या पुलिस पर राजनैतिक दबाव में काम करने का आरोप सही है?

निष्कर्ष:
यह मामला केवल एक एफआईआर का नहीं, बल्कि पुलिसिंग के पूरे तंत्र की निष्पक्षता की परीक्षा है। यदि नेत्री के साथ घटना हुई है, तो आरोपी को सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन यदि आरोप गढ़े गए हैं, तो यह न्याय और लोकतंत्र दोनों के लिए गंभीर खतरा है।

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