बिलासपुर। (CG ई खबर): हरेली जैसे पारंपरिक और खुशियों भरे पर्व के दिन जहां छत्तीसगढ़ का हर कोना हरियाली और उल्लास में डूबा था, वहीं बिलासपुर जिले के सीपत थाना क्षेत्र अंतर्गत खम्हरिया गांव का साहू परिवार गहरे ग़म में डूब गया। ग्राम उच्चभट्ठी स्थित शिव शक्ति पीठ मंदिर से दर्शन कर लौटते वक्त साहू परिवार की वेगनआर कार (CG11 MA 0663) तुंगन नाले के उफनते पुल पर पानी के तेज बहाव में बह गई।
कार में कुल 9 सदस्य सवार थे — मोहनलाल साहू उर्फ भोला, उनकी पत्नी, भाई और 5 छोटे-छोटे बच्चे। हादसा इतना भयावह था कि कार करीब 150 फीट तक पानी में बहती चली गई। किसी चमत्कार की तरह मोहनलाल समेत अन्य सदस्य किसी तरह तैरकर बाहर निकले और चार बच्चों को बचा लिया, लेकिन उनका तीन वर्षीय इकलौता बेटा तेजस साहू पानी में बह गया।
43 घंटे बाद झाड़ियों में मिला मासूम का शव
घटना की जानकारी मिलते ही सीपत पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन रात के अंधेरे और पानी के विकराल रूप के चलते रेस्क्यू में बाधा आई। अगले दिन सुबह SDRF की टीम और ग्रामीणों ने सघन तलाश अभियान शुरू किया। अंततः लगभग 43 घंटे बाद, घटनास्थल से करीब 500 मीटर दूर एक झाड़ी में बबूल के पेड़ के नीचे तेजस का शव फंसा मिला। शव की हालत बेहद खराब थी।
पोस्टमॉर्टम के बाद जब तेजस का शव गांव लाया गया, तो पूरे गांव में मातम छा गया। हर आंख नम थी और हर जुबान पर एक ही सवाल था — क्या यह हादसा टाला नहीं जा सकता था?
पुल की बदहाली पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा, प्रशासन को घेरा
ग्रामीणों का आरोप है कि तुंगन नाला पुल 1994-95 में बना था और तब से आज तक उसकी मरम्मत नहीं हुई। ना पुल पर कोई रेलिंग है, ना चेतावनी बोर्ड। बरसात में यह पुल जानलेवा साबित होता है। ग्रामीणों ने बताया कि हर साल इस स्थान पर हादसे होते हैं, फिर भी प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।
गांव वालों ने जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और पुल के तत्काल पुनर्निर्माण की मांग की है। साथ ही चेतावनी दी है कि अगर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वे बड़े आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।
सवालों के घेरे में प्रशासन: तेजस की मौत हादसा या लापरवाही?
- क्यों नहीं लगाया गया चेतावनी बोर्ड?
- पुल की ऊंचाई और सुरक्षा पर अब तक ध्यान क्यों नहीं?
- क्या हर बार किसी मासूम की जान जाने के बाद ही जागेगा सिस्टम?
तेजस की मौत सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता की गवाही है। गांव के लोग कह रहे हैं कि अगर समय पर पुल की मरम्मत हो जाती, तो शायद तेजस आज जिंदा होता।
निष्कर्ष:
43 घंटे तक उम्मीद की डोर थामे माता-पिता अंत में टूटी उम्मीदों के साथ लौटे। तेजस सिर्फ एक बच्चा नहीं था, वह एक पूरी उम्मीद था, जो प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ गया। अब देखने वाली बात यह है कि क्या तेजस की मौत से सिस्टम सबक लेगा या अगली त्रासदी का इंतजार करेगा?