भिलाई बाजार में त्रिपक्षीय वार्ता विफल होने के बाद घमासान
भूविस्थापितों और प्रबंधन के बीच बढ़ता तनाव, अधिकारियों के तेवर आग में घी डाल रहे
गेवरा//कोरबा: कोयला उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से एसईसीएल (SECL) द्वारा खदानों का विस्तार लगातार जारी है। इसी कड़ी में 11 साल पहले अर्जित की गई ग्राम गेवरा बस्ती की भूमि के अधिग्रहण के लिए आज भिलाई बाजार स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में त्रिपक्षीय वार्ता रखी गई।
इस बैठक में प्रशासन की ओर से एसडीएम तन्मय खन्ना, जबकि एसईसीएल प्रबंधन की ओर से शिखर सिंह चौहान, नरसिम्हा राव उर्फ मंगू, आशुतोष कुमार उपस्थित रहे। ग्रामवासियों की ओर से बड़ी संख्या में विस्थापित पहुंचे। ग्रामीणों ने अपनी लंबित मांगों का समाधान और पारदर्शिता की मांग करते हुए जमीन देने से इनकार कर दिया।
❌ वार्ता विफल, बाहर निकलते ही भड़का विवाद
बैठक विफल होने के बाद ग्रामीण और अधिकारी बाहर निकल रहे थे कि इस दौरान शिखर सिंह चौहान द्वारा दिए गए आपत्तिजनक कमेंट से माहौल बिगड़ गया।
ग्रामीण आशीष पटेल द्वारा आपत्ति जताने पर दोनों पक्षों में कहा-सुनी बढ़ी और मामला मारपीट में बदल गया।
सूत्रों के अनुसार दोनों पक्षों को चोटें आई हैं।
आशीष पटेल ने इस घटना की रिपोर्ट हरदीबाजार थाना में दर्ज कराई है।
पुलिस ने शिखर सिंह चौहान के विरुद्ध धारा 296, 115(2), 351(3) बीएनएस के तहत अपराध पंजीबद्ध किया है।
📍 हरदीबाजार के बाद भिलाई बाजार में भी विरोध की लहर
इससे पहले हरदीबाजार की जमीन के अधिग्रहण को लेकर भी त्रिपक्षीय वार्ता का विरोध हुआ था।
ग्रामीणों ने एसडीएम को ज्ञापन देकर स्पष्ट किया था कि उनकी 7 प्रमुख मांगों के समाधान के बिना किसी भी तरह का सर्वे या अधिग्रहण स्वीकार नहीं किया जाएगा।
अब भिलाई बाजार के ग्रामीण भी इसी रुख पर हैं।
⚠️ पूर्व के कड़वे अनुभव दे रहे सबक
कुसमुंडा और दीपका परियोजनाओं के विस्तार के दौरान हुई भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं में भूविस्थापितों के साथ कई बार वादाखिलाफी हुई।
अब भी कई लोग मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं।
प्रबंधन की मनमानी और प्रशासनिक उदासीनता ने ग्रामीणों के विश्वास को तोड़ा है।
सीबीआई जांच की आड़ में कई पुराने मामलों को दबाने के आरोप भी लग रहे हैं।
💰 दलालों ने काटी चांदी, वास्तविक ग्रामीण हुए बेबस
जानकारों के अनुसार, जमीन अधिग्रहण की सूचना लीक होने के बाद राजस्व और एसईसीएल अधिकारियों की सांठगांठ से बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई।
कई दलाल और अधिकारी करोड़ों का मुआवजा ले उड़े, जबकि असली भूविस्थापित आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
मलगांव, सुवाभोड़ी और अमगांव जैसे गांव इसके जीते-जागते उदाहरण हैं।
🔊 “अब नहीं देंगे जमीन जब तक पूरी न हों मांगें”
हरदीबाजार और भिलाई बाजार के ग्रामीणों ने साफ कहा है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक किसी भी सूरत में जमीन नहीं देंगे।
वे मानते हैं कि अभी संघर्ष करना बेहतर है, बजाय भविष्य में पछताने के।
📢 — रिपोर्ट: CG ई खबर
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